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~तनहाई~

तनहा था तनहाई थी ,बात लबों तक ना आईं थी आज पूछे सब तेरे लिए ,पूछा ना होगा तेरी तनहाई तू मंद मंद मुस्कान बिखरे ,छिपाता रहा अपनी तनहाई   जिंदगी के जंग यूं ही हार गए, क्यों छोड़ संसार गए , तुम से कल तक जो ना पुछा सके,तेरे दर्द ए दिल का आलम आज वो भी दर्द में रोए,तू ने कितनेआंख भिगोएं  क्या है ये बेबसी क्यूं मन बस में नहीं , सुशांत तुम ने क्यूं की खुुद से ये खुुशी ,क्या तेरा कोई अपना नहीं ? दीप नहीं जला सकूं तेरे जीवन के अंधरे में कभी, तेरी तनहाई महसूस कर सकती हूं उजालों में भी  तेरे जख्मों को रौंदा होगा ,तेरे दर्द ने तुझे कोंधा होगा तनहाई की टीस तरपाती फिर जान पे बन आती हैं तनहा मन समझ पाती हूं , दीपशिखा  मै यूं ही जलती जाती हूं                    ~Deepshikha jha