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जुलाई 5, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

@ पर्दे के पीछे @

जिनकी कहानी लिखते थे , जिनके क़िस्से सुनते थे जिनको आदर्श मान कर,उनके पथ कदम पर चलते थे उनको भी आज देखा धूंआ में सुलगतें हुए । जो कभी देश के गौरव में सामिल थे, जब चलते वो हर  नामों के हर तरफ़ जिन के दरवाज़  पर पटकरों ने घेरे आज देखा उनके खिड़कियों पर पर्दे लगें हुए ।   जगमगाते चेहरे राज़ इनमें छुपाएं हुए गहरे ना जानें कितने ढूबें हैं मायानगरी के मयाबी समंदर में । पर्दे पर देखती जब मैं आदर्श किरदारों की कहानी मन में ही सोचती इस बात से अनजानी "पर्दे की लेखनी" हैं ऊपर वाले से अच्छी कहानी ।

वर्षगांठ

साथ साथ चले ना जाने कब उम्र वर्षों गुज़र गए  तुम आज भी वही सुर्ख गुलाब सी लगती हो  राहें सुंशान थी जब तन्हा हुआ करते थे सफ़र में तेरे साथ - साथ जिंदगी और हसीन होती रही हम एक - दूसरे के साथ चलते रहे ना जाने वक्त कब गुज़रा  कुछ याद नहीं  जिंदगी के हर दौर में तुम मेरे साथ रही  "जिंदगी" छोड़ा था मेरा साथ एक दफा पर तू मेरा हाथ थामे रही ,तेरे विश्वास  पे ही खड़ा हूं  ए "हमसफ़र "  तेरे साथ फिर चल पड़ा हूं मैं                              ~Deepshikha Jha