@ पर्दे के पीछे @
जिनकी कहानी लिखते थे , जिनके क़िस्से सुनते थे जिनको आदर्श मान कर,उनके पथ कदम पर चलते थे उनको भी आज देखा धूंआ में सुलगतें हुए । जो कभी देश के गौरव में सामिल थे, जब चलते वो हर नामों के हर तरफ़ जिन के दरवाज़ पर पटकरों ने घेरे आज देखा उनके खिड़कियों पर पर्दे लगें हुए । जगमगाते चेहरे राज़ इनमें छुपाएं हुए गहरे ना जानें कितने ढूबें हैं मायानगरी के मयाबी समंदर में । पर्दे पर देखती जब मैं आदर्श किरदारों की कहानी मन में ही सोचती इस बात से अनजानी "पर्दे की लेखनी" हैं ऊपर वाले से अच्छी कहानी ।