बिन कहें वो पढ़ लेती है मुझे , मेरे हिस्से का दर्द भी सह लेती हैं। हर बुरे साएं से बचाती हैं मुझे, अच्छाई का पाठ पढ़ाती हैं। परछाई सी साथ निभाती हैं , हर ज़ख़्म पे मरहम लगाती हैं। मेरी खुशी के लिए लड़ जाति है, अपने आंचल में गम छुपाती है । जैसे समंदर में मोती की तलाश हो, सभी के लिए तुम इतनी ही ख़ास हो "माँ" तुम ऐसी एक "एहसास" हो , जिसकी सागर को भी प्यास हो । ~Deepshikha Jha ✍️
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मई 7, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं