बिन कहें वो पढ़ लेती है मुझे ,
मेरे हिस्से का दर्द भी सह लेती हैं।
हर बुरे साएं से बचाती हैं मुझे,
अच्छाई का पाठ पढ़ाती हैं।
परछाई सी साथ निभाती हैं ,
हर ज़ख़्म पे मरहम लगाती हैं।
मेरी खुशी के लिए लड़ जाति है,
अपने आंचल में गम छुपाती है ।
जैसे समंदर में मोती की तलाश हो,
सभी के लिए तुम इतनी ही ख़ास हो
"माँ" तुम ऐसी एक "एहसास" हो ,
जिसकी सागर को भी प्यास हो ।
~Deepshikha Jha ✍️
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