*जीवन में गुरु*
तारीफ़ करू क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया हर बार गिरती रहीं मैं तुमने उठना सिखाया। मिट्टी सी ढेर परी थी तुमने "ज्ञान गंगा" भर घड़ा* बनाया राहों में काटें बोहोत थे पैरों में छाले पड़े थे हर मुश्किल राहों पर चलना सिखाया। तारीफ़ करू क्या उसकी जिसने तुम्हें ......! नौ रूप देवी के दुनियां में तेरा रूप अनेक है कभी "माँ" कभी "पिता" कभी "शिक्षक" कभी "शिक्षिका" बनी, आनेको रूप में एक "उद्देश्य" छिपा है "शिक्षा का संदेश" दिखा हैं । अल्फाजों में कहूं गुस्ताख़ी होगी, इतनी गुनाह की माफ़ी होंगी "गुरु की ज्ञान सागर से कुछ बूंदें उधार रख लूं" कैसे तेरा शुक्रगुजार करूं सिर्फ इतनी सी फ़रियाद सुनो तारीफ़ करू क्या उसकी जिसने तुम्हें .....! ~ Deepshikha Jha