मन "आशांत" ,नाम " सुशांत" था तू भीड़ में "एकांत" था गांव "पूर्णिया" ,"पटना" बासी ,निर्मल गंगा तेरे "राख"की प्यासी । "महानगर" ने तुमको "मोहा", चमक - दमक ने तुमको "तोड़ा", तन्हा होकर "जीवन"से फ़िर तू अपना मुंह "मोड़ा"। "जीवन" का "सुख" छोड़ गया, सब "नाता- रिश्ता"तोड़ गया, अपनों को "तन्हा" छोड़ गया ,चाहने वालों का "दिल" तोड़ गया। ज़िक्र करू कैसे तेरे " श्र्वन" का आंख से "टप-टप" छलके "मोती", एक "बेजुबान" संसार में छोड़ गया। ~ Deepshikha Jha