~ दूरियां~
दूर से ढोल के धुन सुहावने लगते हैं, दूर के रिश्ते जमानें तक चलते हैं। दूर से जंगल मनभावने लगते हैं, पास जानें पर डरावने लगते हैं। कहते सुना है कि दोस्ती दूर सेअच्छी होती हैं, सच्चा प्यार अक्सर दूर हो जाय करतें हैं। दूर से कोयल की कूक प्यारी लगती हैं, दूर शीशे के दरवाज़े से वारिश निराली लगती हैं। दूर से आसमान हसीन लगतें है, सपने हक़ीक़त से रंगीन लागतें हैं। दूर संगीत की गूंज मधुर लगती हैं, जमीं से फ़लक की दूरी जंचति हैं। अब दूरियां बढ़ रही दरवीयां तो मायूसी कैसी चाहत तो यही थी अब ये ख़ामोशी और शिकायत कैसी , चाहत तो यही थी जो पूरी हुई हैं। ~Deepshikha Jha