*मेरी किताब*

मैं नहीं जानती कभी मुझे पहचान मिलेगी
या नहीं मिलेगी मैं रोज़ अपनी ज़िन्दगी से
सीखकर नई शुरुआत लिखतीं हूं मैं अपनी 
किताब लिखतीं हूं ।

बे कस* ज़िन्दगी से चुराकर जस्बात 
अपनी रोज़ नई अल्फ़ाज़* लिखतीं हूं 
मैं अपनी किताब लिखतीं हूं।

अदीब* नहीं मैं बे फ़िक्र कि तुम मुझे
पढ़ा करों फिर रोज़ नई अज़ल*आगाज़
लिखतीं हूं मैं अपनी किताब लिखतीं हूं।

*अकेला
*शब्द
*विद्वन
*कभी ना मिटने वाला
                           ~Deepshikha Jha

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