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अप्रैल 19, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
ना जाने ये क्या होगया , तुम मिले इस तरह की, हम से हमीं खोगाया । ज़माने ढूंढता हूं तुम्हें, ना मैं, मैं रहा न तुम रहे, "हम"सफ़र शुरू हो गया। यादों का समा बनता रहा, सपनो का मौसम ढलता रहा, तुम में मैं जलता रहा। तन्हायों की ख़बर नहीं है, हर तरफ़ मुस्कुराते चेहरे है, गम की घुप छाया में खुशियों के सबेरे है।                  ~दीपशिखा झा