एक चांद है फलक पर देखती मैं भी हूं देखतें तुम भी हो"तुम मुझ से जुदा कैसे हो"। मंजिल अलग है एक राह अकेली है उन्हीं राहों से गुजरती मैं भी हूं गुजरतें तुम भी हो "तुम मुझ से जुदा कैसे हो"। एक आशियाना है खुदा का जहां पर मैं भी हूं वहां पर तुम भी हो " तुम मुझ से जुदा कैसे हो"। ~Deepshikha Jha
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जुलाई 14, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं