एक चांद है फलक पर देखती मैं भी हूं 
देखतें तुम भी हो"तुम मुझ से जुदा कैसे हो"।

मंजिल अलग है एक राह अकेली है उन्हीं राहों 
से गुजरती मैं भी हूं गुजरतें तुम भी हो
"तुम मुझ से जुदा कैसे हो"।

एक आशियाना है खुदा का जहां पर मैं भी हूं
वहां पर तुम भी हो " तुम मुझ से जुदा कैसे हो"।
       
                                         ~Deepshikha Jha


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आत्मसम्मान

आज़ाद हूँ मैं

~प्रकृति ~