* बे रहम दुआ *

दूरियों की दुआ मांग रहे जो कभी ,
सूनली खुदा ने अर्जी अब उनकी 
रिश्तों से रिश्तों को दूर किया है।
मां को बच्चे ,पत्नी को पति, 
हर शख़्स को मजबूर किया है।

इंसान को इंसानियत से दूर किया है।
जो हाथ गिरने पर उठाने,जो दूसरों के
आसुं पोछा करते थे जो भूखे को भोजन 
और जरूरत मंद का सहारा बना करते थे
वो आगे बड़ने से हिचकिचाने लगे अब ।

मजदूर से मजदूरी को दूर किया है।
जिनको कभी पल भर की फुर्सत
नहीं थी अपनों के साथ बैठने की
वो थक गए मायूस और लाचार 
चेहरों की रौनक लौटने को तरस रहे।

नाम से नाम को दूर किया है।
इस मौसम ने देखो कितनो को 
मजबूर किया है। कोई नाम बनाने
को मिटता था कभी ये कैसा दिन 
आया है कई हस्तियों की कश्ती
डूब गई ये कौनसा दौर नया लाया है। 
                          ~Deepshikha Jha 

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