"पर्दे के पीछे"

जिनकी कहानी लिखते थे , जिनके क़िस्से सुनते थे
जिनको आदर्श मान कर,उनके पथ कदम पर चलते थे
उनको भी आज देखा धूंआ में सुलगतें हुए ।

जो कभी देश के गौरव में सामिल थे,जिनके दरवाजों पर पत्रकारों के डेरे थे, नाम जिनका ले- ले कर लोग नसीहत देते थे, देखा उनके खिड़की पर आज सन्नाटें को घेरे हुए।
 
जगमगाते चेहरे राज़ इनमें छुपाएं हुए गहरे ना जानें कितने ढूबें हैं मायानगरी के मयाबी समंदर में, सितारों
की दुनियां में ना जाने कितने अंधरे हैं बिखेरे हुए।


पर्दे पर देखती जब मैं आदर्श किरदारों की कहानी मन में ही सोचती इस बात से अनजानी "पर्दे की लेखनी" हैं ख़ुदा से बेहतर कहानी , नादान थी पर्दों में छिपी बे पर्द  लोगों की कहानी ।
                              ~Deepshikha Jha


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