~ माँ~
कैसे कहूं क्या हो "तुम"
नदी की रेत के साथ पवन की बहती
हुई धारा हो"तुम ",सागर में जो। पाप
निथर जाएं ऐस किनारा हो "तुम"।
कैसे कहूं क्या हो "तुम"
अनजान गली के मोड़ पर जो मिल जाएं
वहीं सहारा हो "तुम", आंधियारों में मिली
" दीए "की रोशनी जैसी उजाला हो "तुम"
कैसे कहूं क्या हो "तुम"
सर्दियों में चाय की प्याली सी प्यारी हो
"तुम",बड़ी न्यारी हो "तुम", बगों में
खिले फूलों कि क्यारी हो "तुम"
कैसे कहूं क्या हो "तुम"
गर्मी में जो आराम दें वहीं वृक्ष की
छाया हो "तुम" वारिस में रक्षा करने
वाली घने वृक्ष की तना हो "तुम"
कैसे कहूं क्या हो "तुम"
गीता की वाणी सी रामायण की कहानी सी
"आंचल" जिसके है काले बादलों से बड़े वहीं
कल्याणी हो "तुम"
कैसे कहूं क्या हो "तुम"
गंगा कि धारा ,यमुना सी पानी शब्दों
से "अंत "ना हो जिसकी कहानी
कैसे कहूं " माँ "क्या हो "तुम"
कैसे कहूं क्या हो "तुम"
~दीपशिखा झा
टिप्पणियाँ