~ तेरा पता~
कितने मिले इस जहां पर, कितने मिले आसमान पर ,
तेरा पता ढूंढू कहां ,तू हैं किस मकाम पर
अपना पता सब भूलकर , ढूढ़ती तुझे ए बेखबर
रातों को यू बेसब्र ,दिन कि कहां मुझ को हैं फीकर
सुबह से लेकर शाम तक ढूंढ़ती तुझो ये नज़र कहां छुपा है बेखबर बनाकर मुझे अपना हमसफ़र कहां छुपा है बेखबर
बनकर यूं अनजान तू ,बैठा है आराम से तुझको नहीं
कोई खबर कहां छुपा है बेखबर ....!
तेरा पता ढूंढू कहां ,तू हैं किस मकाम पर
~ Deepshikha Jha
टिप्पणियाँ