#मै#
कोई अपना कहां मिला इस जहां में ,
मै भटकती रही हूं आसमां में।
सब अपना - अपना कह जाते हैं
हम यूं ही तन्हा रह जाते हैं।
मुझसे नहीं "मैं" से जोड़ते हैं नता
"मै" मिले,जहां फिर कुछ नहीं उन्हें भाता ।
यारी, दुनियां - दारी, मां - बाप सिर्फ
नाम के शोहरत - रुतबा है काम के ।
Deepshikha Jha
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