*चार लोग*(एक सोच)

"चार लोगों" क्या कहेंगे इस सोच में चंद ज़िंदगियां बिखर जाया करती हैं, लेकिन उन "चार लोग" की खोज कभी ना हुईं ना होगी कभी ।

जिन "चार लोगों"से हम परेशान रहा करतें हैं, सच तो ये है उन्हें भी वही "चार लोग" परेशान करते है।

क़सूर उन "चार लोगों" में या क़सुर हमारे सोच में एैसे ख्याल कभी आते ही नहीं, क्या बन्दी हैं हम "चार लोग" के या "चार लोग" बन्दी बने है तुच्छ सोच के ।

"चार दिन"की ज़िंदगी"चार लोगों" के लिए जिया करतें है,
वो"चार लोग"जो मिलते नहीं उनका बोझ उठाएं फिरते हैं ।

"चार दिन" की जिंदगी जिलों अपने लिए, चंद पल खुशी के रखलो अपने लिए, चंद ख़ुशीयां बांट लोंं वहीं "चार लोग" याद रखतें हैं, मानसिकता के बीमार हम "चार लोग" की शिकायत करते हैं ।
                                     ~ Deepshikha jha
 


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