क्या आप जानतें हैं झुग्गी बस्तियों की कहानी

अक्सर शहरी शोर शारावें में हम कुछ दर्द से भरी शोर को अनदेखा कर देते हैं , वो छोटे - छोटे हाथों में फूल लेकर गाड़ी के पीछे - पिछे भागते दिखते हैं ।
पर हम तक उनकी प्रिस्थिति के शोर नहीं पहुंच पाती हैं। और कभी सुनाई पर भी जाएं तो हम so called society में रहने वाले  high class लोग हैं। खिड़कियों के कांच बंद कर लिया करते हैं। 
              फरवरी माह की पहली तारीख को मैं मेरी बहन सुबह की सैर के लिए निकले,  पार्क से थोड़ी दूर पहले ही एक EHCC प्राइवेट अस्पताल है। जो कि बोहोत ही "जाना - माना"और मेहगा हैं। अक्सर वहां बड़ी - बड़ी गाड़ी में बैठ कर बड़े लोग ही इलाज़ करवाने आया करते है। वहीं झुग्गी झोपड़ी बनाकर कुछ लोग भी रहा करते हैं ।
                   इतनी बड़ी और "स्पेशली हार्ट सर्जरी" वाले अस्पताल में कोई बड़े स्तर के नेता और अभिनेता न आतें हो,ऐसा असंभव है । और जेएलएन मार्ग जो रास्ता एयरपोर्ट के लिए जाति है, वही से बड़ी - बड़ी  शख्सियत वाले लोग निकलते हैं , पर उनकी सहायता करने अगर कभी कोई आगे भी आता है तो वो मध्यम वर्गीय परिवार ही , यदि बड़े स्तर के लोग आगे हाथ बढ़ाए "सहायता और शिक्षा" के लिए तो बड़े पैमाने पर हमारे देश में कुछ बदलाव और सुधार ज़रूर होगा ।कुछ उदाहरण होंगे जिसमें "वृद्धि" और "कमी" सामाजिक आर्थिक सुधार के लिए अवस्यक हैं जैसे शिक्षा बढ़ेगा , जनसंख्या काम होंगी ,रोजगार मिलेगा और गरीबी कम होंगी ।
                                              सरकार बहुत से योजना "गरीबों और गरीबी रेखा" के अनुसार बनाती है। जहां तक मेरा मानना है। जो झुग्गी झोपड़ी में सड़क के किनारे कपड़े के तम्बू बना कर जीवन यापन करते हैं। उनका नाम तो जनगणना रिपोर्ट पर भी दर्ज़ नहीं होता होगा , "राशन कार्ड" और "बीपीएल कार्ड" तो दूर की बात है। यदि सरकार को ऐसी परिस्थिति में रहने वाले लोग दिखाई देती तो , क्यूं नहीं कोई ऐसा कानून बनता जिसमें उनको भी स्कूली "शिक्षा" के लिए बाध्य किया जाएं।
     अक्सर अखबारों और न्यूज में देखने को मिलता है सड़क किनारे रहने वाले लोगों को "शराब के नशे में धूत ड्राइवर ने नींद में  कुचला" ,फिर क्यूं नहीं सरकार ऐसे कानून व्यवस्था करती हैं, जिसमें सड़क किनारे रहने की अनुमति न हो हर शहर में अलग से रात्रि विश्राम के लिए जगह दिया जाएं।
यदि हमारे देश के बड़े society में रहने वाले हर व्यक्ति की विचार धारा मेरे मित्र की तरह हो तो शायद इस देश में कोई भी व्यक्ति "अशिक्षित" और "भूखा" और अपने दुखों से दूर एक नई दुनियां की शुरुआत कर सकें, इसके लिए "एक क़दम" विचार करने मात्र की है। नए उन्नत देश और समाज के लिए ।
                           दीपशिखा झा

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