आज़ाद हूँ मैं
तितली सी। आज़ाद हूँ मैं ,
अपने पिता की सर ताज हूँ मैं।
क्यों बांधो तुम मुझे इन बेड़ियों में,
क्या छुपाने वाली कोई राज़ हूँ मैं।
बिटिया - बिटिया कहकर समाज ने
पायल बांध दिया पैरो में , इज्जत हूँ
परिवार का नथ बांध दिया नाकों में।
बेड़ियों में जकड़ी हुई, बेटी ,बहु ,
घर की लाज हूँ मैं ।
दहलीज के अंदर आज़ाद हूँ मैं,
उड़ाने फिर रूक जाती हैं मेरी सब रिश्तों
की बुनियाद हूँ मैं , ये स्त्री रूपी बंधनों से
कब हुई आज़ाद हूँ मैं ,
पर्दों में लिपटी हुई , संभालती पूर्ण रस्मों
रिबाज़ हूँ मैं , मर्यादाओं का दीवार हूँ मैं ,
महिला हूँ मन की रानी और मन में ही आज़ाद
हूँ मैं ।
~दीपशिखा झा✍️
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