हठ
बच्ची - बच्ची नहीं करतीं,
मुझ में एक बच्चा रहता हैं,
कितना समझाती हूं उसको,
फिर ज़िद वो करता है।
कभी - कभी जो रूठ जाएं,
आँखों से मोती बिखर जाते हैं,
लाख मनाती हूं उसको मायूस
हो कर रह जाता हैं।
एकेले में जब मिलती हैं,
बहलाती हूं समझाती हूं,
बचपन का दौर गया अब तो,
लेन-देन की शुरू कहानी है।
मन कहता है हठ छोर दे,
फिर उठ संभाल कर चल,
रास्ते में अपनों से फिर नाता
जुड़ जाता है, मेरे बचपना
फिर से उभर आता है।
~दीपशिखा झा
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