आत्मसम्मान
मैं आत्मा हूं ,मुझ में ,तुझ में, उसमें, सब में होता हूं। मैं हूं तो तू रोता है, मैं हूं तो हस्ता हैं, मैं हूं तो तू है। मैं हूं तो हर जगह, हर समय, हर जीव और जीवन में हूं। मैं दया में, मैं क्रोध में , मैं लोभ में, माया और प्रेम भी मैं, मैं अहंकार में और मैं ही आदर और सम्मान में हूं, मैं प्रभावी हूं, मैं सह भागी हूं, मैं स्वार्थी भी हूं और पुरूषार्थ भी । सभी गुण से रहित मैं देना भी जनता हूं, और लेना भी। और जहां सम्मान ना मिले स्वाभिमान हूं। मैं आत्मा अभिमानी हूं। ~दीपशिखा झा